*गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय अभिधम्म दिवस सम्मेलन*
गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ, नई दिल्ली, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय अभिधम्म दिवस सम्मेलन का समापन आज सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस संगोष्ठी में 7 देशों के 11 संस्थाओं से आए 50 से अधिक बौद्ध विद्वानों और शोधकर्ताओं ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।
सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि एवं अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के निदेशक प्रो. रवींद्र पंथ ने अपने वक्तव्य में चित्त परिशुद्धि एवं मानसिक स्वास्थ्य में अभिधम्म की भूमिका पर चर्चा की। प्रो. पंथ ने कहा कि अभिधम्म बौद्ध दर्शन का वह गहन अंग है जो चित्त की शुद्धि और आत्मानुशासन के माध्यम से मानसिक संतुलन स्थापित करता है। उन्होंने बताया कि अभिधम्म का अध्ययन मन के सूक्ष्म स्वरूप को समझने में सहायक है, जिससे व्यक्ति करुणा, शांति और मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में अग्रसर होता है।
समापन सत्र की विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. सुभ्रा बरुआ पावागढ़ी ने पालि साहित्य एवं बौद्ध संस्कृति के आलोक में अभिधम्म के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. राणा प्रताप सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आधुनिक विश्व में गौतम बुद्ध की शिक्षाओं की प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त किए। प्रो. सिंह ने कहा कि गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं। उन्होंने बताया कि करुणा, मध्यम मार्ग और आत्मचेतना के सिद्धांत आधुनिक समाज में शांति, संतुलन और नैतिक जीवन के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।
संगोष्ठी समन्वयक डॉ. सिवसाई ने स्वागत भाषण एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया तथा संगोष्ठी की रिपोर्ट भी साझा की। दूसरे दिन आयोजित पांच सत्रों की अध्यक्षता प्रो. एच. पी. गंगनेगी, प्रो. रीनू मिश्रा एवं प्रो. सुभ्रा बरुआ ने की। इन सत्रों का संचालन डॉ. चंद्रशेखर पासवान, डॉ. मनीष मेश्राम, डॉ. प्रियदर्शिनी मित्रा, डॉ. ज्ञानादित्य शाक्य एवं श्री विक्रम सिंह ने किया।
समापन सत्र का संचालन भिक्षु डॉ. अर्नांदा ने किया। इस अवसर पर डॉ. चंदन कुमार, डॉ. प्रवीण कुमार, डॉ. पल्लवी मुखर्जी, डॉ. भारती, डॉ. अजीत कुमार सहित अनेक विद्वानों ने सक्रिय सहभागिता की। यह सम्मेलन अभिधम्म के गहन अध्ययन और समकालीन संदर्भों में उसकी उपयोगिता पर विमर्श का सशक्त मंच सिद्ध हुआ।

