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गाय हमारी संस्कृति और आस्था का हिस्सा आज से नहीं वरन् हजारों वर्षों से रही है। इसलिए जिन लोगों को “गौ माता से बदबू” आती है, उनकी मंशा को समझना जरूरी है”*

*”गाय हमारी संस्कृति और आस्था का हिस्सा आज से नहीं वरन् हजारों वर्षों से रही है। इसलिए जिन लोगों को “गौ माता से बदबू” आती है, उनकी मंशा को समझना जरूरी है”*

*”जल से ही पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व, इसलिए जल के अनावश्यक दोहन को रोकना ही पड़ेगा”*

अनंत काल से जिन नदियों ने मानव सभ्यता को जीवित रखने का काम किया। आज हम अपनी आदतों से उन नदियों को लगभग 60 प्रतिशत तक सुखा चुके हैं। इसलिए आज लगभग सभी नदियां अनावश्यक जल के दोहन से कराह रही हैं और यह आने वाली पीढियों और हमारे भविष्य के लिए उचित नहीं है। साथ ही समुद्र के किनारे बसे हुए शहर किसी भी दिन इन समुद्रों की लहरों की चपेट में आ सकते हैं। पृथ्वी पर हमारे पास लगभग 71 प्रतिशत जल है, जिसमें से मात्र पौने तीन प्रतिशत जल ही पीने योग्य बचा है, क्योंकि नदियों के एक बड़े हिस्से को, हम अपनी आदतों से नष्ट कर चुके हैं। उपरोक्त शब्द आज दिनांक 29 मार्च 2025 को जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने ग्राम बरसात में एशियन पेंट और फोर्स संस्था द्वारा आयोजित जल-कुशल स्मार्ट किसान सम्मान उत्सव कार्यक्रम में क्षेत्र के उपस्थित सैकड़ो लोगों के मध्य कहे।
जेवर विधायक श्री धीरेन्द्र सिंह ने यह भी कहा कि *”आज हम अपनी जिंदगी को आसान बनाने के लिए जल का बेतरतीब तरीके से दोहन कर रहे हैं, जो आने वाली पीढ़ियों और भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। जहां नदियों को माता का दर्जा दिया गया है। गंगा और यमुना जैसी नदियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के साथ-साथ हमें अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए प्रकृति की भी पूजा करनी चाहिए।”*
जेवर विधायक श्री धीरेन्द्र सिंह ने विगत दिनों “गौ माता से बदबू” की बात करने वालों पर जुबानी हमला बोलते हुए कहा कि *”गाय हमारी संस्कृति और आस्था का आज से नहीं वरन् हजारों वर्षों से हिस्सा रही है। इसलिए जिन लोगों को गौ माता से बदबू आती है, उनकी मंशा को समझना जरूरी है।”*
जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने अंत में कहा कि *”इसराइल ने खेती और जल संरक्षण के लिए अपने आप को इतना उन्नत बना लिया है तो, फिर हम लोग, अपने देश को उन्नत क्यों नहीं बना सकते हैं। प्रकृति ने हमें अपार संसाधन दिए हैं। यह गंगा-यमुना का दोआब क्षेत्र है। इसलिए जहां हम रहते हैं, यह दुनिया का अति उपजाऊ क्षेत्र है।”*

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